बावरे दिल बता जरा तेरे दिल में क्या छिपा
रुक तो जा जरा क्यों छिपाता ही जा रहा
जिसे खोजता फिरता, 'सरल' गाँव शहर में
क्या तू भी आ गया है प्यारे, उसकी नज़र में
उसका अपना सपना भी है, संसार भी है
मरमर के महलों में सोता राजकुमार भी है
पहला इश्क है मेरा कोई इश्तिहार नहीं है
जो भरे दोपहरे में चिल्लाता ही जा रहा
बावरे दिल बता जरा........
माना आसपास है मेरे, ये एहसास है तुझको
कोई रिश्ता है मुझसे, ये विशवास है तुझको
मगर क्या इश्क भी उसका, इतना मुकम्मल है
क्या उसको भी फ़िक्र मेरी, इतनी आजकल है
इक पहेली वो है और इक पहेली तू है
जो बेफिक्र होकर जश्न मनाता ही जा रहा
बावरे दिल बता जरा........
सवाल हैं कुछ मेरे, जवाब उसको है देना
समझता हूँ बरसों से कि क्यूँ वो समझे ना
कभी दिल जो था मेरा, अब नाम उसको है
मेरा इश्क तन्हा है, ये पैगाम उसको है
तन्हा रोना सीखा है ,तन्हा सोना सीखा है
गुमसुम हो भली ही कुछ गुनगुनाता ही जा रहा
बावरे दिल बता जरा........
हाँ कल था मैं उसका ,पर मेरा आज उससे है
ये अंदाज़ भी उसका है, समाज भी उससे है
भले ही दूर हो मुझसे ,वो मेरे पास रहती है
उसकी तो बातों में भी, कुछ मिठास रहती है
ये तेरी प्रीत कैसी है ये तेरे गीत कैसे हैं
सिलसिला ये गीतों का चलाता ही जा रहा
बावरे दिल बता जरा........
अपने सपनो में क्या वो, छोटा सा कोना देगी
मेरे ढाई आखर आखिर , क्या वो समझ लेगी
क्या मेरी मोहब्बत इकतरफा नही होगी
क्या वो अब भी मुझसे यूँ खफा नही होगी
बड़ा नादान है तू और कुछ शैतान भी है
जो खुद न समझ पाया ,समझाता ही जा रहा
बावरे दिल बता जरा.........
बिन अल्फाज़ छिपके, बिन आवाज़ चुपके
इश्क सरगम में डूबा साज़ सजाता है जा रहा
बावरे दिल बता जरा........
- सुशांत 'सरल'
[सुशांत प्रताप सिंह ]
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