पैगाम -ए -मोहब्बत

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दिन तलक कि  रात तक,
            तलाश है कि क्या चाहिए|
परेशां हूँ मैं हैरान हूँ,
          संभालने को तो आ जाइए|
दिया तलक यूँ रात तक,
            नींदों में ऐसे बस जाइये|
निराश हूँ मै हताश हूँ,
            बुरे दिनों को समझाइए|

शमां तलक उस चिराग तक,
          आहों भरी भाहों में समाइए|
निगाह तलक इज़हार तक,
    लफ़्ज़ों से लबों को सजाइए|
पहचान तलक निशान तक,
          मेरे अक्स में घर कर जाइये|
उड़ान तलक आसमान तक,
         संग संग दो पल तो बिताइए|

आवाज़ तलक एहसास तक,
            रही सही हमसे बतलाइए|
जुबां तलक बयाँ तक ,
            ग़ज़ल कोई सिखा जाइए|
सौग़ात हूँ मैं मुलाकात हूँ,
           कभी तो हम को अपनाइए|
अनजान तलक एहसान तक,
            दिल अपना हमें दे जाइए|

इश्क तलक मेरे अश्कों तक ,
             प्यार मेरा ना ठुकराइए|
मंथन हूँ मैं समर्पण हूँ,
        चाहे नाम अपना लिख जाइए|
तस्वीर तलक तकदीर तक,
          हांथों की लकीर बन जाइए|
दिन तलक कि आज तक,
           तलाश है कि क्या चाहिए|..............  
                                        -सुशान्त 'सरल'
      






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