इजहार

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तेरा आदी हुआ हूँ मैं यूँ ऐसी खुमारी है
मेरे दिल मैं बसती है इतना बताना है

          मैं तेरे सामने हूँ या नज़रों से ओझल हूँ

          कहीं तुझसे जुड़ा हूँ ये अहसास कराना है

चहरे का क्या आईने में उभर ही आता है

मुझे तो खुद में तेरा चहरा बनाना है

          ज़हाँ के दिन से किसी पल होकर ओझल

          तेरे पल पल में मुझे अब आना जाना है

मेरी तड़प की आहों को महसूस जो करले

तेरा ज़ज्ब दिल बनाकर सीने में सजाना है

           उस दिल की फरयाद है रब से कुदरत से

           फुरसत से तेरे संग इक 'कल ' बिताना है

अब मेरा जो सब तू है मेरा ही 'अब' तू है

रूह की स्याही से नया फ़साना बनाना है

           गर तू सुराही है मय की तो मैं मयखाना हूँ

           ये महफ़िल भी हम से है हम से ज़माना है

गर तू जो बाती है तेरी लौ में ज़ल लूँगा

पतंगा हूँ जलकर भी तुझ में मिट जाना है

           तेरा आदी हुआ हूँ मैं यूँ ऐसी खुमारी है

           मेरे दिल मैं बसती है इतना बताना है........

                                                      - सुशांत 'सरल'


आदी - इच्छुक,शौकीन
ज़ज्ब - चाहत
'कल '- नसीब , भविष्य










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