" तेरे एक गम के कोने में बस्ती बना लेंगे
तेरे नाम को ही अपनी हस्ती बना लेंगे
तन्हाई में भीगी मेरे मन की बारिश में
यादों के पन्ने कागज की कश्ती बना लेंगे "
फिर भी बस इतना ही कहना चाहूँगा "गुमसुम हूँ मगर निःशब्द नहीं ,कर्मठ हूँ मगर बेवक्त नहीं ,विचार वर्णों के अधीर है ,अधर के नहीं ,स्पष्ट उचारण में जीना है ,अगर-मगर में नहीं "..........और भविष्य बस में हो न हो ,बस यही कहना है "नहीं परवाह जमाने भर की दखलों की ,साहित्य को समर्पित ,कविता में मिटता रहूँगा ,कोई कितना रोके कितना टोके ,लिखता था!लिखता हूँ !लिखता रहूँगा!!!"
" महनत से बना सोच के सांचे ,तकदीर को ढंग देना है ,जवाँ धड़कन संग है तेरे ,पहचान को नया रंग देना है ,ज़हाँ की तुझ पर निगाहें हैं ,ये ज़हन में तरंग देना है,शब्दों के लय में झूमे समां ,साहित्य में वो उमंग देना है |"-सुशांत ' सरल '
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