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आज सब पाकर भी हुआ क्यों हूँ खाली
बेगाना हर चेहरा लम्हे हुए सवाली
नही वो ऐसा सब कुछ था जो मेरा
यादें जेसे मय हों तन्हाई मय की प्याली
रगों की नमीं भी क्यूँ चुभती सी रही
जानूँ न में क्यूँ सबसा में नहीं
परछाई भी दूर क्यूँ मुझसे ए खुदा
आईने में अब तो अक्स मेरा ही नहीं
महफिलों में खुदको क्यूँ पाया है अकेला
अनजान राहों का रही न जाने क्या है मेला
वज़ूद ही मेरा मुझसे कोई धोखा तो नहीं
ज़ो खातिर इसकी रूह का दर्द भी है झेला
परिंदों की आज़ादी भी न मुझमें
मंज़र की बर्बादी भी न मुझमें
ख़ाली तस्वीर रंगों से जुदा हूँ मै
खिलखिलाती आबादी भी न मुझमें
ओस की बूंदों में छुपा अतीत खुश होता है
बादलों की गोद में इक सपना सा मेरा सोता है
ढूँढ रहा जिसे दिशाओं के छोर से
नहीं पता पर वो पता मुझमें ही कहीं होता है
अब बस उम्मीदों की लौ में आँखें अंगड़ाती है
सुबहा के संग सूरज वो रंग भी लायेगा
ज़ब इबादतें मेरी हासिल होंगी रब को
ये बेरंग रंग भी रंगीला हो जाएगा
-सुशान्त 'सरल'
wah ! bahut khub
ReplyDeleteओस की बूंदों में छुपा अतीत खुश होता है
बादलों की गोद में इक सपना सा मेरा सोता है
ढूँढ रहा जिसे दिशाओं के छोर से
नहीं पता पर वो पता मुझमें ही कहीं होता है
thanx!!!!
DeleteYour Response Is like a boost for me .......