ख़्वाब-ए -ग़ज़ल

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तस्वीर है तू मेरी मुझमे ही कहीं होगी 
थी तालीम ज़माने की तू मेरी नहीं होगी 
इबादत थी खुदा से वो जन्नत यहीं होगी 
 न करे खुदा कभी पर ग़र नहीं होगी 
तो शायद कसर इबादत में रही होगी 
माने न माने कोई पर बात यही होगी 
सबूत वक्त होगा और गवाह वही होगी 
संजीदा होंगी मुलाकातें ज़ब बातें नयी होंगी
थोड़ी सी अनसुनी थोड़ी अनकही होंगी
ज़ब शब् लबों से तर बतर गयी होंगी 
ताकेगा ये जहाँ नज़रें हम पर तही होंगी 

मगर बेवफा न होना ख्वाब ए ग़ज़ल 
वर्ना ज़िस्म यहीं और सांसे कहीं होंगी 
लिबाज़ में होगा मन बस रूह नहीं होगी
तस्वीर है तू मेरी मुझमे ही कहीं होगी.... 
                                   -सुशान्त 'सरल'  



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